आधी सदी से भी ज्यादा समय तक स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने जिस सुरीली आवाज से देश को खुशी, गम, आंसू, प्रेम सहित तमाम भावनाओं की अनुभूति करवाई, उस आवाज के प्रति शुरुआत में वे बहुत बेफिक्र रहीं।
जानकार और शुभचिंतक उन्हें खूब कहते कि लता खट्टा मत खाया कर, तीखा मत चखा कर, ये मत किया कर, वो मत पिया कर, लेकिन लताजी थीं कि सारी चीजें खूब चाव लेकर खातीं और किसी चीज का ज्यादा परहेज नहीं करतीं। फिर भी न तो उनकी आवाज में कभी कोई खराश आई, न ही खराबी।
   दरअसल, लताजी को मसालेदार भोजन करने का शौक है। एक समय तो ऐसा भी था जब वे एक ही दिन में 12-12 मिर्च खा जाया करती थीं। सुबह के भोजन में 6-7 और शाम को भी इतनी ही। उन्हें किसी ने कह दिया था कि मिर्च खाने से आवाज खुलती है। बस, लता ने मिर्च खाने को अपना शौक बना लिया। इससे रोकने के लिए 60 से लेकर 90 के दशक तक के संगीत निर्देशकों ने उन्हें खूब टोका, अनुनय किया, लेकिन लताजी नहीं मानीं। वे अपने सुरीले गले के बारे में हमेशा कहती रहीं- 'जिस ईश्वर ने मुझे सुरीला गला दिया है, वही इसकी देखरेख भी करेगा। सब उसका है, वो ही जाने।"