पुराने दौर के लोग कितने स्वाभिमानी, सरल और एक-दूसरे का सहयोग करने वाले होते थे, यह किस्सा इसकी बानगी है। किस्सा कुछ यूं है कि महान कवि हरिवंशराय बच्चन जब छोटे थे, तब उन सहित परिवार के सभी बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने के लिए ट्यूशन लगवाई गई।
गुरुजी विश्वनाथ प्रसाद सभी बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाते, बदले में उन्हें आठ रुपए महीना मानदेय दिया जाता। इसी बीच बच्चन परिवार की बेटी का ब्याह हुआ, जिससे हरिवंशजी के पिता पर दो हजार रुपए का कर्ज चढ़ गया। इसे उतारने के लिए घर खर्च में कटौती शुरू हुई, तो सबसे पहले अंग्रेजी ट्यूशन बंद करने का निर्णय हुआ। मगर गुरुजी से सीधे कहा कैसे जाए ! तब एक पत्र में लिखा गया कि 'अब घर पर कर्ज है, इसलिए मानदेय देना संभव न होगा। अतः आपसे अनुरोध कि ट्यूशन पढ़ाना बंद कर दीजिए।'
पत्र मिलने पर गुरुजी मुस्कुराए और अगले दिन तय समय पर बच्चन के घर ट्यूशन पढ़ाने पहुंच गए। पढ़ाने के बाद उन्होंने हरिवंशजी के पिता से कहा - 'मैं मानदेय के लिए नहीं पढ़ाता। ये तो मेरा कर्म है। यदि मैं बच्चों को विद्या न दूंगा तो इससे मेरे पुण्य का क्षय हो जाएगा। अतः आप मानदेय दें या न दें, मैं तो बच्चों को पढ़ाऊंगा।' उसके बाद तो गुरुजी सालभर बिना वेतन पढ़ाते रहे। जब मानदेय लेते थे,तब तो कभी-कभी वे छुट्टी भी ले लेते थे, मगर बाद में नैतिकता के चलते एक भी छुट्टी नहीं ली।
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