आजादी के पहले जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस के प्रमुख नेता के रूप में अंग्रेजों के खिलाफ नीतिगत जंग का हिस्सा भी रहे। मगर कुछेक मौके ऐसे भी आए, जब उनका सामना अंग्रेजों के लाठी भांजते सिपाहियों से हुआ तो उनके भीतर का अभिजात्य नागरिक विचलित हो गया। एक बार तो ऐसा भी हुआ जब वे सिपाहियों द्वारा स्वयंसेवकों को लाठी से पीटते देख खुद डर के मारे छुप गए थे।
किस्सा उस दौर का है जब साइमन कमीशन का विरोध कर रहे लाला लाजपतराय पर अंग्रेजों ने इतना जुल्म किया कि उनकी मृत्यु हो गई। इससे पूरे देश में आक्रोश फैला और हर जगह आंदोलन होने लगे। गरम दल के क्रांतिकारी तो खुलकर मैदान में आए और अंग्रेजों से सीधे भिड़ गए, मगर नरम दल के लोग रैली, बैनर, पोस्टर से विरोध कर रहे थे।
ऐसे में एक बार कांग्रेस ने रैली निकालकर विरोध करना तय किया। 16-16 लोगों की टुकड़ियां अलग-अलग गलियों में नारे लगाते निकलीं। एक टुकड़ी का नेतृत्व नेहरू कर रहे थे। जब वे एक सुनसान गली से गुजर रहे थे, तभी पीछे से घोड़ों की टाप सुनाई दी।
पीछे लाठी भांजते सिपाही आ रहे थे। उन्हें देख नेहरू सहित कुछ स्वयंसेवक छुप गए, जबकि कुछ डटे रहे। जब डटे स्वयंसेवक लाठी खाकर भी विचलित नहीं हुए तो धीरे-धीरे नेहरू व अन्य छुप चुके बाकी स्वयंसेवक भी बाहर निकल आए।
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