भारतीय राजनीति के लौहपुरुष कहे जाने वाले मेरा प्रदेश सरदार पटेल के कठोर राजनीतिक फैसलों के बारे में तो सब जानते हैं, मगर यह तथ्य कम ही जाना-पहचाना है कि वे राजनीति में आए कैसे? दरअसल, इसके पीछे एक लंबा व रोचक किस्सा है।
यह किस्सा उस समय का है जब सरदार पटेल इंग्लैंड में वकालत की पढ़ाई कर 1913 में भारत लौटे। अहमदाबाद में उन्होंने अपनी वकालत शुरू की और केस लड़ने की अपनी अनूठी शैली के कारण जल्द ही लोकप्रिय हो गए। अपने मित्रों के आग्रह पर पटेल ने 1917 में अहमदाबाद के सैनिटेशन कमिश्नर का चुनाव लड़ा और उसमें जीत गए।
पटेल तब गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सफलता से काफी प्रभावित थे। इसी बीच 1918 में गुजरात के खेड़ा खंड में सूखा पड़ा। किसानों ने करों से राहत की मांग की, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मना कर दिया। गांधीजी ने
किसानों का मुद्दा उठाया पर वो अपना पूरा समय खेड़ा में अर्पित नहीं कर सकते थे। इसलिए वे ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रहे थे, जो उनकी अनुपस्थिति में इस संघर्ष की अगुवाई कर सके। तब सरदार पटेल स्वेछा से आगे आए और संघर्ष का नेतृत्व किया। इस प्रकार उन्होंने अपने सफल वकालत के पेशे को छोड़कर सामाजिक, राजनीतिक जीवन में प्रवेश किया।